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मानव नेत्र की संरचना तथा दृष्टि दोष क्या हैं ।

 



हैलो फ्रेंड्स आज मैं आपको एक नए विषय के बारे में बताने वाला हु । आज मैं मानव नेत्र के बारे में बताने वाला हु । आज इस आर्टिकल में हम मानव नेत्र क्या है । मानव नेत्र की संरचना और मानव नेत्र के भाग के बारे विस्तार  से बताने वाला हु ।  



मानव नेत्र (आंख) क्या हैं 


मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रीय है । यह कैमरे की तरह काम करता हैं । हम अदभुत संसार और रंग - बिरंगे चीजों को इसी द्वारा देख सकते है।  यानी हम हर चीज को  नेत्र (आंख) के द्वारा ही देख पाते है । अगर यह आंख न रहे तो इन सब को देख पाना असम्भव है । 
नेत्र की बाहरी संरचना गोलाकार होती है इसलिए इसे नेत्र गोलक (eye ball) कहते है । 
मानव नेत्र (आंख) एक विशेष प्रकार का प्रकाशिये यंत्र है । मानव नेत्र (आंख) लगभग गोलिए होता है ।  आंख का लेंस प्रोटीन से बने पारदर्शी पदार्थ होता है  । 



मानव नेत्र की संरचना (Structure of Human Eye) 



दृढ़ पटल (sclerotic)


मनुष्य  का नेत्र एक खोखले गोले के समान होता है । जो बाहर से दृढ़ और अपारदर्शी स्वेत परत से ढका होता हैं , इस परत को दृढ़ पटल कहते है । 
दृढ़ पटल नेत्र का सबसे बाहरी परत होता है । यह दृढ़ तंतुमय संयोजी ऊतक का बना होता है । 
यह नेत्र की भीतरी भागों की सुरक्षा करता है । और प्रकाश के अपवर्तन में सहायता करता है । 

कॉर्निया  (cornea) 


मानव नेत्र को सामने से देखने पर दोनों पलकों के बीच जो भाग दिखाई देता है । उसे कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते है । 
दृढ़ पटल के सामने का उभरा हुआ पारदर्शी भाग कॉर्निया कहलाता है । नेत्र में प्रकाश इसी से होकर प्रवेश करता  है ।  


रक्तक पटल (choroid ) 


दृढ़ पटल के बाद काले रंग की झिल्ली होती है , जिसको रक्तक पटल कहते है । 
यह आंख पर आपतित होने वाले प्रकाश का अवशोषण करता है तथा आंतरिक परावर्तन को रोकता है । 
रक्तक पटल वर्णक कोशिकाओं (pigment cells) का बना होता हैं । वर्णक (pigment) के आधार पर ही आंखो का रंग अलग - अलग होता है । 
रक्तक पटल के आधार पर ही आंखो का रंग काला , भूरा , नीला दिखाई देता है । 


परितारिका (Iris) 


कॉर्निया के पीछे एक रंगीन झिल्ली का पर्दा होता है , इसे परितारिका (Iris) कहते हैं । 
परितारिका के मध्य में एक छिद्र होता है इसे पुतली (pupil) कहते है ।  


पुतली या नेत्र तारा ( pupil ) 


परितारिका के बीच में एक छिद्र होता है , जिसे पुतली या नेत्र तारा कहा जाता है । 
पेशियों के सहायता से यह अपने आप बड़ा या छोटा होता रहता है । 
कॉर्निया से आया प्रकाश पुतली से होकर ही लेंस पर परता है । पुतली अंधकार में अपने आप बड़ी और अधिक प्रकाश में अपने आप छोटी हो जाती है । 
कभी - कभी आप तेज रौशनी से अचानक जब कम रौशनी में आते है तो आपको सब कुछ धुंधला सा दिखाई देने लगता है । यह इस कारण से होता है की जब आप तेज रौशनी में रहते है तो पुतली छोटा होता है और जब आप अचानक से कम रौशनी में आते है तो पुतली को बड़ा होने से थोड़ा समय लगता है इसी कारण से हमे धुंधला दिखाई देता है । 


दृष्टि पटल  ( Retina ) 


रक्तक पटल के नीचे तथा नेत्र के सबसे अंदर की ओर एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसे रेटीना या दृष्टि पटल कहते है । 
यह प्रकाश सुग्रही होती है । तथा इसपर दृष्टि तंत्रिकाओं (optic nerves) का जाल फैला रहता है । 
किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टि पटल या रेटीना पर बनता है । दृष्टि तंत्रिका ही रेटीना पर बने प्रतिबिंब के रूप , रंग तथा आकार आदि का ज्ञान मस्तिष्क को देता है 
रेटीना के अंदर दो प्रकार की प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं पाई जाती हैं । 

1. दृष्टि शलाकायें 

2. दृष्टि शंकु 


1. दृष्टि शलाकायें 

यह दृष्टि कोशिकाएं प्रकाश की तीव्रता का आभास कराती है । यानी यह प्रकाश और अंधकार  के अन्तर को पहचानती है ।


2. दृष्टि शंकु 

यह वस्तु के रंग का आभास कराता है अर्थात यह रंग की पहचानता है । 



नेत्र लेंस (Eye Lens)


आयरिस के ठीक पीछे पारदर्शी ऊतक का बना उभ्योतल या द्विउत्तल लेंस होता है । जो नेत्र लेंस कहलाता है । 
नेत्र लेंस निलंबन लिगामेंट (suspensory ligament ) द्वारा लेंस रक्तक पटल की सिलियरी बॉडी से जुड़ा रहता है । 
निलंबन लिगामेंट लचीले होते है।  और लेंस को थोड़ी आगे पीछे खिसका सकते है । लेंस लचीला होता होता है । लेकिन आयु बढ़ने के साथ साथ लेंस चपटा और कम लचीला हो जाता है , और अधिक घना और भूरा सा हो जाता है । 



पक्ष्माभी पेशियां  (ciliary muscles)


पक्षमाभी पेशियों की सहायता से ही नेत्र लेंस अपने स्थान पर टिका रहता है ।
यह मशपेशियाँ आवश्यकता अनुसार नेत्र लेंस की फोकस दूरी को प्रवर्तित कर सकती है । नेत्र लेंस पर दवाब डालने से फोकस कम हो जाती है , तथा खिंचाव से फोकस दूरी अधिक हो जाती है ।
  

जलीय द्रव (Aqueous Humour )


कॉर्निया एवं नेत्र लेंस के बीच के रिक्त स्थान में द्रव भरा होता है । जिसका अपवर्तनांक 1.33 होता है । इस द्रव को जलीय द्रव कहते है । 


दृष्टि के लिए हमारे दो नेत्र क्यों है । 


क्या आपने कभी यह सोचा है की हमारे दो नेत्र क्यों है और इसका क्या लाभ है । तो चलिए आपके इस सवाल का जवाब देते है । 
मनुष्य में एक नेत्र (आंख) का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र 150° होता है । अर्थात आप एक आंख से 150° के क्षेत्र तक देख सकते है । और वही दोनो नेत्रों द्वारा 180° तक देख सकते हैं । यानी हमारे दो नेत्र होने से हम ज्यादा विस्तृत देख सकते हैं । 



दृष्टि दोष क्या है (Defect of vision) 


एक सामान्य व्यक्ति में स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 cm होती हैं । वह 25 cm से लेकर अनंत पर रखी वस्तु को रेटीना पर फोकस कर सकता है । यानी वह व्यक्ति न्यूनतम दूरी 25 cm. और अधिकतम दूरी अनंत तक देख सकता है । 
लेकिन उम्र बढ़ने या किसी अन्य कारण से आंख की देखने की क्षमता कम या समाप्त हो जाती है । तो यह दोषपूर्ण नेत्र हो जाता है , जिसे दृष्टि दोष कहते है । 


दृष्टि दोष के प्रकार 


दृष्टि दोष मुख्यतः तीन प्रकार के होता है । 

निकट दृष्टि दोष 

दूर दृष्टि दोष 

जरा दृष्टि दोष  


निकट दृष्टि दोष ( Myopia or short sitedness) 


निकट दृष्टि दोष  को निकट दृष्टिता (Near- sitedness ) भी कहते है । निकट दृष्टि दोष युक्त कोई व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो साफ देख सकता है , लेकिन दूर रखी वस्तुओं को सपष्ट नही देख पाता है । ऐसे दोष युक्त व्यक्ति का दूर बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है । 
ऐसा व्यक्ति कुछ मीटर दूर रखी वस्तु को ही स्पष्ट देख पाता है । 
निकट दृष्टि दोष युक्त नेत्र में , किसी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टि पटल (रेटीना ) पर न बनकर दृष्टिपटल के सामने बनता है 

इस दोष के उत्पन्न होने का क्या कारण है 

 इस दोष के होने के निम्न कारण है जो नीचे दिए गए हैं   । 

(I) अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना ।

(II) नेत्र गोलक का लंबा हो जाना । 

(III) लेंस की फोकस दूरी घट जाती हैं ।

(IV) लेंस की क्षमता बढ़ जाती है । 

इस दोष का निवारण 


इस लेंस का निवारण अवतल लेंस या अपसारी लेंस (concave lens) के उपयोग से किया जाता है ।
अवतल लेंस किसी वस्तु के प्रतिबिंब को दृष्टि पटल या रेटीना पर वापस ले आता है । इस तरह अवतल लेंस के प्रयोग से इस दोष का निवारण किया जाता ही । 


दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia or long sitedness )


दूर दृष्टि दोष की दूर दृष्टता (far - sitedness) भी कहते है । दूर दृष्टि दोष युक्त कोई व्यक्ति को दूर पर रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है , लेकिन निकट पर रखी वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता है । ऐसे दोष युक्त व्यक्ति का निकट बिंदु सामान्य निकट बिंदु (25 cm) से दूर हट जाता है । ऐसे व्यक्ति को कोई किताब पढ़ने के लिए 25 cm से काफी दूर रखना परता है । इसका कारण है किसी वस्तु से आने वाली प्रकाश रेटीना के पीछे फोकस होना । यानी प्रतिबिंब रेटीना के पीछे बनता है । 

इस दोष के उत्पन्न होने का कारण - 


(I) लेंस की गोलाई कम हो जाती हैं । 

(II) लेंस की फोकस दूरी बढ़ जाती है । 

(III) लेंस की क्षमता घट जाती हैं । 


इस दोष का निवारण 


इस दोष के निवारण के लिए उत्तल लेंस या अभसारी लेंस (convex lens ) के उपयोग  से किया जाता है 


जरा दृष्टि दोष (presbyopia)


आयु में वृद्धि होने के साथ नेत्र की समंजन क्षमता घटने से उत्पन्न दोष को जरा दृष्टि दोष कहते है । 
इसमें पक्ष्माभी पेशियां (ciliary muscles) कमजोर हो जाती है । जिसके कारण व्यक्ति न तो दूर की वस्तु और न ही निकट की वस्तु देख पाता है । 

इस दोष का निवारण 


इस रोग के निवारण के लिए द्विफोकसी (Bi focal lens) का प्रयोग किया जाता है । 
द्विफोकसी लेंस में अवतल लेंस को ऊपरी भाग में तथा उत्तल लेंस को निचली भाग में लगाया जाता हैं । जिससे व्येक्ती आंखों को ऊपर करके दूर की वस्तुओं को तथा आंखों को नीचे करके नजदीक की वस्तुओं को देख पाता है । 

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