Ad Code

मानव कान (Human ear) क्या है पूरी जानकारी ।

 



मानव कान क्या है  


कान को श्रवण संतुलन अंग या श्रवणोंसंतुलन इंद्रिया ( stato - Acoustic Receptors) भी कहते है । 

हमारे सिर में नेत्रों के पीछे की ओर पार्श्व में दो कर्ण (ear) होते है , यानी मनुष्य में दो कान (ear) होते है ।

कान सुनने (hearing) और शरीर का संतुलन (equilibrium) बनाए रखने का काम करते है । इसलिए इन्हे श्रावणोसंतुलन इंद्रियां कहते है । 


मानव कान की संरचना  (structure of Ear)




हमारा प्रत्येक कर्ण तीन प्रमुख भागों में बंटा है - 


1. बाह्य कर्ण ( external ear )

2. मध्य कर्ण ( middel ear )

3. अन्तः कर्ण ( enternal ear )


1. बाह्य कर्ण (external ear) 


यह कर्ण का सबसे बाहरी भाग होता है । इसमें में भी तीन भाग होता है - 

1. कर्ण पल्लव (ear pinna)

2. बाह्य कर्ण मिटस (auditory canal )

3. कर्णपटह (eardrum) 


कर्ण पल्लव (ear pinna) 


यह कर्ण का का सबसे बाहरी भाग होता है । यह अर्ध - कीपनुमा (half funnel - like ) के आकार का होता है । इसे हाथ से थोड़ा हिला डुला सकते है । 
कर्ण पल्लव ध्वनि तरंगों को एकत्रित करके कर्ण मिटस (external auditory meatus) में भेजता है । 
जानवरों में जैसे - गाय , भैंस , बिल्ली , कुता , हाथी ,  बिल्ली आदि में कर्ण पल्लव बड़े - बड़े आकार के होते है । और हाथी में तो कर्ण पल्लव बहुत बड़े आकार के होते है । 
आप सब ने कभी देखा होगी की इनमे से कोई भी जानवर कुछ सुनना होता है । तो कान को रडार एंटीना की तरह खरा करता है ।  

बाह्य कर्ण मिटस (auditory canal) 


यह कर्ण पल्लव (पिन्ना) से भीतर की ओर फैली लगभग 2.5 सेमी. लंबी नलिका होती है । 
इसकी भीतरी भाग में टेम्पोरल हड्डी (temporal bone) पाई जाती हैं । यह पिन्ना के आधार भाग से लेकर कर्ण पटह (कान का पर्दा) तक होती है । यह मध्य कर्ण की गुहा को बाह्य कर्ण की गुहा से अलग करती है । 


कर्णपटह (eardrum) 



कर्णपटह झिल्ली  (tympenic or tympanum ) को कान का पर्दा (eardrum) भी कहते हैं। 
कर्णपटह या कान के पर्दे पर किनारे की तरफ एपिथिलियम का आवरण और मध्य में तंतुकिए संयोजी ऊतक का का आवरण होता है । 
बाह्य कर्ण मिटस की दीवार में सेरूमिनस ग्रंथियां (ceruminous glands) होती हैं , जो मोम के जैसा पदार्थ स्रावित करती है , जो कर्ण पटह को चिकना बनाए रखता है । और उसकी रक्षा करता है ।  
द्वारा मुख ग्रसनी में खुलती है । 

2. मध्य कर्ण (middel ear) 


यह कर्ण पटह के भीतर की ओर , करोटि की टेंपोरल हड्डी की वायु से भरी असममित गुहा के रूप में होता है , जिसे कर्णगुहा(tympanic cavity) कहते है । 
कर्ण गुहा यूस्टेकी नली (eustachian tube) 
मध्य कर्ण की गुहा दो छोटे छोटे छिद्रों के द्वारा आंतरिक कर्ण की गुहा से भी जुड़ी रहती है । 
चलिए इन दो छिद्रों के नाम भी जान लेते है । 
उपर की ओर स्थित अंडाकार छिद्र को अंडाकार ग्वाछ या फ्नेस्ट्रा ओवेलिस तथा नीचे की ओर वाले छिद्र को फेनेस्ट्रा रोटंडा कहते है । 
कर्ण गुहा के भीतर तीन छोटी - छोटी कर्ण अस्थियां पाई जाती है इसी मध्य कर्ण में तीन छोटी छोटी हड्डी पाई जाती है , जिन्हे कर्ण अस्थियां कहते है । 
इन तीन हड्डियों को मैलियस और इनकस एवं स्टेप्स कहते है । 


मैलीयस 


मैलीयस सबसे बड़ी हड्डी होती है । और यह हथौरेनुमा आकार की होती है । इसका बाहरी शिरा सखरा होता है और भीतर का शिरा चौरा होता है । इसका बाहरी शिरा कर्णपटह झिल्ली से जुड़ा होता है तथा भीतरी शिरा इनकस से जुड़ा रहता है । 
यह निचले जबरे की आर्टिकुलर की अस्थि से बनता है । 


इनकस (Incus) 


यह निहाई (anvil) के आकार की होती है । इसका बाहरी भाग चौरा वाला सिरा मैलियस से जुड़ा होता है । तथा भीतरी , पतला सिरा स्टैपिज से जुड़ा रहता है । 
यह ऊपरी जबरे को क्विड्रेट अस्थि से बनता है । 


स्टेपीज या स्टेप्स (steps)  


यह घोड़े के रकाब (stirrup) के आकार की होती है । अतः इसके बीच में एक बड़ा त्रिकोणकार छिद्र होता है यह एक और इनकस से जुड़ी रहती है तथा दूसरी ओर फेनेस्ट्रा ओवलिस पर मढ़ी झिल्ली से लगी रहती है । 
स्टेपीज हयोमैंडीबुलर का रूपांतरण है । सभी कर्ण अस्थिकाएं लचीले स्नायुओ (ligaments) द्वारा कर्ण गुहा  की दीवार से गुहा में सधी रहती है । ध्वनि तरंगें इन्ही अस्थिकाओ द्वारा कर्ण गुहा से लेकर अन्त: कर्ण में पहुंचती है । 
मध्य कर्ण या कर्ण गुहा ध्वनि ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है । 


अंत: कर्ण (Internal ear) 


यह अर्धपारदर्शक झिल्ली की बनी एक जटिल संरचना के रूप में होता है जिसे कलागहन कहते है । इसका अधिकांस भाग सकरी (canals) का बना होता है । इसके मध्यवर्ती भाग में दो थैलीनुमा वेशम (chamber) होते है पहला युट्रीकुलस (utriculus ) तथा दूसरा सैक्यूलस होते है । 
यूत्रीकुलस से तीन अर्धवृताकार नलिकाएं निकलती है । इन तीनों के नाम नीचे दिए गए है । 

a) अग्र अर्धवृताकार नलिका 
b) पस्च अर्धवृताकार नलिका
c) बाह्य अर्धवृताकार नलिका
 
अग्र एवम पस्च नालिकाएं यूट्रीकुलस से एक ही स्थान से निकलती है तथा कुछ दूर तक जुड़ी रहती हैं । दोनों नलिकाएं के इस भाग को कम्यून  कहते है । प्रत्येक नलिका का दूरस्थ सिरा फूला हुवा होता हैं इस फूल गोल भाग को एंपुला कहा जाता है । 
सेक्युलस का पिछला सिरा लंबा एवं स्प्रिंग की तरह कुंडलित होता है । इसको कॉकलियर नलिका (cochlear duct) कहते है । 
कॉकलियर नलिका के कुंडल लचीले लिगामेंट द्वारा एक दूसरे से जुड़े रहते है । 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ